धनबाद (निरसा). दीपावली के आगमन के साथ ही धनबाद जिले के निरसा और आसपास के इलाकों में कुम्हारों की चाक फिर से घूमने लगी है. घरों की सफाई, सजावट और पूजा की तैयारी के बीच मिट्टी के दियों की मांग में तेजी आ गई है. लेकिन लगातार बारिश और मौसम की बेरुखी ने कुम्हारों की मेहनत पर पानी फेर दिया है, जिससे उनके चेहरों पर थोड़ी मायूसी देखी जा रही है.

पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रभु श्रीराम जब 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में मिट्टी के दिये जलाकर नगर को रोशनी से जगमगाया था. तभी से दीपावली मिट्टी के दियों की रौशनी का पर्व बन गया है. इसी परंपरा को निभाते हुए आज भी लोग घरों में मिट्टी के दिये जलाना शुभ और शुद्धता का प्रतीक मानते हैं.

निरसा और चिरकुंडा के कुम्हार परिवार पीढ़ियों से इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. ये परिवार दिन-रात मेहनत कर मिट्टी के दिये, कलश, खिलौने, गुल्लक और अन्य पूजा सामग्री बनाते हैं. हालांकि इस बार लगातार बारिश के कारण मिट्टी सूख नहीं पा रही, जिससे उत्पादन धीमा पड़ा है. बाजारों में बढ़ती मांग को पूरा करना कुम्हारों के लिए चुनौती बन गया है.

स्थानीय कुम्हारों का कहना है कि वे पूरे परिश्रम से दिये बना रहे हैं, लेकिन मेहनत के अनुपात में उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा. साथ ही बाजारों में चीनी और एलईडी लाइटों की भरमार ने भी उनके कारोबार को प्रभावित किया है. पहले पूरा मोहल्ला हमारे दिये खरीदता था, अब लोग चाइना लाइट लगा लेते हैं,” एक कुम्हार ने बताया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बातकार्यक्रम में देशवासियों से स्वदेशी उत्पादों को अपनाने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि दीपावली जैसे त्योहारों में लोकल फॉर वोकलको प्राथमिकता दें और देश के कारीगरों को प्रोत्साहित करें.

कुम्हार समुदाय ने भी जनता से अपील की है कि इस दीपावली में मिट्टी के दियों का प्रयोग करें. इससे न केवल भारतीय परंपरा को बल मिलेगा, बल्कि ग्रामीण कारीगरों की आजीविका भी सशक्त होगी.

इस दीपावली पर आइए संकल्प लें स्वदेशी अपनाएं, देशी दीये जलाएं, और अपने देश के कारीगरों की मेहनत को रोशनी में बदलें.